6-7% ब्याज देने वाले बैंक
आजकल कई बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs) अपने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए ‘savings account’ और फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर 6-7% या उससे भी अधिक ब्याज दरों का लालच दे रही हैं। लेकिन क्या ये ऊंची ब्याज दरें वाकई फायदेमंद हैं, या इनके पीछे छिपा है कोई जोखिम? एक प्रमुख चीफ इनवेस्टमेंट ऑफिसर (CIO) ने हाल ही में चेतावनी दी है कि ऐसी ऊंची ब्याज दरें ‘red flag’ हो सकती हैं, जो बैंक की वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठाती हैं। इस लेख में हम इस मुद्दे को गहराई से समझेंगे और जानेंगे कि ‘savings account’ में ज्यादा ब्याज का ऑफर क्यों हो सकता है खतरे का संकेत।
ऊंची ब्याज दरों का लालच: क्या है माजरा?
‘Savings account’ में सामान्य तौर पर भारत में 3-4% की ब्याज दर मिलती है। लेकिन कुछ छोटे बैंक और NBFCs 6-7% तक की दरें ऑफर कर रहे हैं। इसी तरह, फिक्स्ड डिपॉजिट पर बाजार के औसत से 1-2% अधिक ब्याज देने का वादा भी आम हो गया है। एक प्रमुख CIO, चढ्ढा, ने हाल ही में बताया कि ऐसी असामान्य रूप से ऊंची ब्याज दरें अक्सर बैंक की वित्तीय कमजोरी का संकेत हो सकती हैं।
उनके अनुसार, इतनी ज्यादा ब्याज दरें देना तभी संभव है जब बैंक अपनी आय को बढ़ाने के लिए जोखिम भरे रास्ते अपनाए। इसका मतलब है कि बैंक अपने फंड्स को हाई-रिस्क लोन, जैसे कि पर्सनल लोन, माइक्रोफाइनेंस लोन, या अन्य असुरक्षित कर्जों में निवेश कर रहे हैं। ये लोन भले ही ज्यादा ब्याज कमाते हों, लेकिन इनमें डिफॉल्ट (कर्ज न चुकाने) का जोखिम भी बहुत ज्यादा होता है।
हाई-रिस्क लेंडिंग: बैंक की रणनीति या मजबूरी?
बैंकों के लिए अपने ‘net interest margin’ (NIM) को बनाए रखना जरूरी होता है। NIM वह अंतर है जो बैंक को लोन पर मिलने वाले ब्याज और डिपॉजिट पर दिए जाने वाले ब्याज के बीच मिलता है। सामान्य तौर पर, एक स्थिर बैंक सुरक्षित और कम ब्याज वाले लोन, जैसे कि होम लोन या कार लोन, पर ध्यान देता है। लेकिन जो बैंक ‘savings account’ या FD पर ज्यादा ब्याज दे रहे हैं, वे अक्सर हाई-रिस्क लेंडिंग की ओर रुख करते हैं।
उदाहरण के लिए, पर्सनल लोन और माइक्रोफाइनेंस लोन में ब्याज दरें 12-20% तक हो सकती हैं। ये लोन छोटे व्यवसायों, व्यक्तियों, या कम क्रेडिट स्कोर वाले लोगों को दिए जाते हैं, जिनमें डिफॉल्ट का जोखिम ज्यादा होता है। अगर ऐसे लोन में डिफॉल्ट की दर बढ़ती है, तो बैंक की वित्तीय स्थिति कमजोर हो सकती है। इससे न केवल बैंक को नुकसान होता है, बल्कि डिपॉजिटर्स के पैसे भी खतरे में पड़ सकते हैं।
डिपॉजिटर्स के लिए कितना सुरक्षित है ‘Savings Account’?
भारत में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) के तहत प्रत्येक डिपॉजिटर का ₹5 लाख तक का डिपॉजिट सुरक्षित होता है। इसका मतलब है कि अगर बैंक डूबता भी है, तो इस राशि तक का पैसा आपको वापस मिल सकता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ऊंची ब्याज दरों वाले ‘savings account’ में पैसा जमा करना पूरी तरह सुरक्षित है।
CIO ने बताया कि असली जोखिम डिपॉजिट की सुरक्षा से ज्यादा बैंक की स्थिरता से जुड़ा है। अगर बैंक बहुत तेजी से क्रेडिट बढ़ा रहा है (यानी ज्यादा लोन दे रहा है) और साथ ही ऊंची ब्याज दरों पर डिपॉजिट जुटा रहा है, तो यह एक ‘red flag’ है। ऐसे में बैंक के पास पर्याप्त लिक्विडिटी (नकदी) न होने या डिफॉल्ट की स्थिति में डिपॉजिटर्स को अपने पैसे निकालने में दिक्कत हो सकती है।
उदाहरण के तौर पर, अगर कोई बैंक माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में ज्यादा लोन दे रहा है और वहां डिफॉल्ट बढ़ता है, तो बैंक की बैलेंस शीट पर दबाव पड़ सकता है। इससे बैंक की सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं, और डिपॉजिटर्स को तुरंत अपने पैसे निकालने में परेशानी हो सकती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस मुद्दे को लेकर कई विशेषज्ञों ने अपनी राय दी है। एक यूजर, @connectgurmeet, ने 21 मई 2025 को पोस्ट किया कि 6-7% ब्याज देने वाले ‘savings account’ और बाजार से 1-2% ज्यादा ब्याज देने वाले FD की पेशकश करने वाले बैंक जोखिम भरे हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बैंक अक्सर हाई-रिस्क लेंडिंग पर निर्भर करते हैं, और तेज क्रेडिट ग्रोथ के साथ ऊंची ब्याज दरें एक चेतावनी का संकेत हैं।
विशेषज्ञ यह भी सलाह देते हैं कि डिपॉजिट करने से पहले ग्राहकों को बैंक की क्रेडिट रेटिंग (जैसे कि ICRA या CRISIL से) जांचनी चाहिए। इसके अलावा, बैंक के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA), कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो (CAR), और लोन-टू-डिपॉजिट रेशियो जैसे वित्तीय मापदंडों पर भी नजर रखनी चाहिए। ये आंकड़े बैंक की वित्तीय सेहत को समझने में मदद करते हैं।
डिपॉजिटर्स के लिए क्या है सही रास्ता?
ऊंची ब्याज दरों का लालच आकर्षक हो सकता है, लेकिन डिपॉजिटर्स को सावधानी बरतनी चाहिए। कुछ जरूरी कदम इस प्रकार हैं:
- बैंक की विश्वसनीयता जांचें: हमेशा उन बैंकों में पैसा जमा करें जिनकी क्रेडिट रेटिंग अच्छी हो (जैसे कि AAA या AA)। रेटिंग जितनी ऊंची, बैंक उतना ही सुरक्षित।
- ₹5 लाख की सीमा में रहें: सुनिश्चित करें कि आपका डिपॉजिट DICGC की ₹5 लाख की इंश्योरेंस सीमा के अंदर हो। अगर आपके पास ज्यादा राशि है, तो उसे अलग-अलग बैंकों में बांट दें।
- वित्तीय जानकारी लें: बैंक की बैलेंस शीट, NPA लेवल, और लिक्विडिटी रेशियो की जांच करें। ये आंकड़े बैंक की वेबसाइट या रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की रिपोर्ट्स में उपलब्ध होते हैं।
- विविधता बनाए रखें: अपने सभी पैसे एक ही बैंक में न रखें। इससे जोखिम कम होता है।
- लंबी अवधि के FD पर ध्यान दें: अगर आप FD में निवेश करना चाहते हैं, तो लंबी अवधि के FD चुनें, क्योंकि ये अक्सर ज्यादा स्थिरता प्रदान करते हैं।
रेगुलेटरी नजरिया और भविष्य की चुनौतियां
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) बैंकों और NBFCs पर कड़ी नजर रखता है ताकि वे जोखिम भरे लेंडिंग प्रैक्टिस से बचें। लेकिन छोटे बैंक और NBFCs अक्सर प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए ऊंची ब्याज दरों का सहारा लेते हैं। यह न केवल उनके लिए जोखिम पैदा करता है, बल्कि पूरे वित्तीय सिस्टम पर भी दबाव डाल सकता है।
आर्थिक मंदी या डिफॉल्ट की दर बढ़ने की स्थिति में ऐसे बैंकों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसलिए, RBI और अन्य नियामक संस्थाओं को ऐसे बैंकों की गतिविधियों पर और सख्ती से नजर रखने की जरूरत है।
निष्कर्ष: सतर्कता ही है समाधान
‘Savings account’ में 6-7% ब्याज या FD में बाजार से ज्यादा ब्याज का लालच भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसके पीछे छिपे जोखिमों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। डिपॉजिटर्स को चाहिए कि वे लालच में न पड़कर बैंक की वित्तीय सेहत की गहन जांच करें। ऊंची ब्याज दरें अक्सर हाई-रिस्क लेंडिंग का नतीजा होती हैं, जो बैंक की स्थिरता को खतरे में डाल सकती हैं।
इसलिए, अगली बार जब आप ‘savings account’ या FD में पैसा जमा करने की सोचें, तो ब्याज दरों के साथ-साथ बैंक की विश्वसनीयता और वित्तीय स्थिरता पर भी ध्यान दें। सतर्कता और सही जानकारी ही आपके पैसे को सुरक्षित रख सकती है।